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समस्या कैसी भी हो, समय बदलता ज़रूर है...

समस्या कैसी भी हो, समय बदलता ज़रूर है...

            प्रसंगवश एक समय गौतम बुद्ध रोज़ अपने शिष्यों को अलग-अलग उदाहरणों के साथ महत्वपूर्ण संदेश दिया करते थे। एक दिन सभी शिष्य बुद्ध के प्रवचन सुनने के लिए बैठे हुए थे। बुद्ध एक रस्सी लेकर शिष्यों के सामने पहुंचे। सभी शिष्य बुद्ध के हाथ में रस्सी देखकर हैरान थे। बुद्ध अपनी जगह पर बैठ गए। इसके बाद उन्होंने रस्सी में एक-एक करके तीन गांठे लगा दीं। बुद्ध ने शिष्यों से रस्सी की ओर इशारा करते हुए पूछा कि क्या ये वही रस्सी है, जो तीन गांठे बांधने से पहले थी? एक शिष्य ने कहा कि यथावत गांठे लगने के बाद भी ये वही रस्सी है। दूसरा शिष्य बोला कि अब इस रस्सी में तीन गांठे लग गई हैं, इस वजह से रस्सी का स्वरूप बदल गया है। अन्य शिष्यों ने कहा कि रस्सी का स्वरूप बदला है, लेकिन इसका मूलरूप में रस्सी वही है। बुद्ध ने कहा कि आप सभी की बातें सही हैं। इसके बाद बुद्ध गांठों को खोलने के लिए रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर जोर से खींचने लगे। 


            बुद्ध ने पूछा कि क्या इस तरह रस्सी की तीनों गांठे खुल जाएंगी? शिष्यों ने कहा कि ऐसा करने से तो गांठे और मजबूत हो जाएंगी। बुद्ध ने कहा कि इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा? शिष्य बोले कि पहले हमें ये देखना होगा कि ये गांठे लगी कैसे हैं? गांठों को कैसे खोल सकते हैं? जब हमें ये समझ आ जाएगा कि गांठे लगी कैसे हैं तो हम इन गांठों को आसानी से खोल पाएंगे। बुद्ध ने कहा कि ठीक इसी तरह हमें समस्याओं के लिए भी सोचना चाहिए। परेशानियों का कारण जाने बिना उन्हें सुलझाने की कोशिश में बात और ज्यादा बिगड़ सकती है। इसलिए पहले समस्याओं की वजह को समझेंगे तो उनका समाधान आसानी से मिल सकता है।
अंधेरे से उजाले तक
            एक अन्य प्रसंग के अनुसार पुराने समय में एक संत अपनी बुद्धिमानी और धार्मिक स्वभाव की वजह से बहुत प्रसिद्ध थे। संत के काफी भक्त अपनी-अपनी समस्याएं लेकर उनके पास आते और संत उन्हें समस्याओं का हल बता देते थे। संत के साथ ही कई शिष्य भी आश्रम में रहा करते थे। एक दिन किसी व्यक्ति ने संत को दान में एक गाय दी। गाय देखकर सभी शिष्य बहुत खुश थे। शिष्यों ने सोचा कि अब हमें रोज ताजा दूध पीने को मिलेगा। गुरु ने कहा, चलो अच्छा है। अब सभी के लिए ताजे दूध की व्यवस्था हो जाएगी।
            कुछ दिनों तक संत और उनके शिष्यों को ताजा दूध मिलता रहा, फिर एक दिन वही दानी व्यक्ति आया और अपनी गाय वापस ले गया। संत ने उसे उसकी गाय लौटा दी। इसके बाद सभी शिष्य दुखी हो गए। संत ने शिष्यों से कहा कि किसी को निराश होने की जरूरत नहीं है। अब हमें अब गाय का गोबर और गंदगी साफ नहीं करना पड़ेगा। अब जो समय बचेगा, वह हम तप और ध्यान लगा सकेंगे।
इंसान की परख                                                                         
जो सोचेंगे वही साकार होगा
            शिष्यों ने पूछा कि गुरुजी आपको इस बात से दुख नहीं हुआ कि अब हमें ताजा दूध नहीं मिलेगा। संत बोले कि हमें सकारात्मक सोच बनाए रखनी चाहिए। समय कैसा भी हो, हमेशा अच्छा सोचें। यही सुखी और सफल जीवन का रहस्य है। अगर हम निराश हो जाएंगे तो जीवन में अशांति और दुख बढ़ने लगेंगे। सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। हमें हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना चाहिए।

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