समस्याएं खुद नहीं आती, अनजाने में हम ही इन्हें पैदा करते हैं
इस तरह का एक बंगला चाहिए और उस तरह की कार ... उनकी तरह सुखमय जीवन, आपने पहले से ही फल का चुनाव कर लिया है। फिर उसे पाने के लिए काम पर उतर गए है। इस बात की परवाह नहीं कि वह आपको जंचेगा कि नहीं, आपके लायक है भी या नहीं। अपनी प्रकृति पहचाने बिना उल्टी दिशा में पतवार चलाते जाएंगे तो आपकी जिंदगी तबाह हो जाएगी। कामयाबी पाने वालों की जिंदगी हमारे लिए प्रेरक बन सकती है, लेकिन उसकी जिंदगी को ही सफलता का मंत्र मान लेना सरासर बेवकूफी है।
आप गाड़ी में जा रहे जा हैं। बीच सड़क पर एक गड्ढा है, आप उसे देख लेते | हैं | उससे बचकर निकलना है तो सड़क पर ध्यान देना होगा । लेकिन, आप क्या करते हैं ? गड्ढे पर ही नजर गड़ाए हुए हैं। अंत में उसी में फंसते हैं, यह मन का स्वभाव है । मन जिस बात को नहीं चाहता वही होकर रहता है। एक प्रयोग करें। मन को हुक्म दीजिए कि अगले पांच मिनट बंदर के बारे में बिलकुल नहीं सोचना है । फिर देखिए क्या होता है? पांचों मिनट बंदरों का झुंड ही मन पर हावी रहेगा। पांव पर चोट लग जाए और अगर आप इसी धुन में रहें कि जिस जगह पर चोट लगी है वहां कोई चीज टकराए नहीं, तो उस जगह पर चोट पर चोट लगती रहेगी। समस्याएं खुद ब खुद नहीं आती, अनजाने में आप ही उन्हें पैदा करते हैं । कोई भी मुसीबत आए, निराश हुए बिना करने योग्य काम को पूर्ण रूप से मन लगाकर कीजिए । समझ में आ जाएगा कि यह भय निरर्थक था ।
- पुस्तक 'चाहो और पा लों' से साभार
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