समस्या क्या है?
यह संभव है कि हम मुक्त होकर जीते रह सकें? जब तक किसी भी प्रकार का केंद्र है, तब तक समस्याएं रहेंगी ही. अब यह समझें कि क्या केंद्र का होना, अजागरूक या बेहोश होने का नतीजा या निचोड़ है ? अगर जागरूकता होती, तो निश्चित ही कोई केंद्र नहीं होगा. समस्या क्या है ? कुछ तो वर्तमान में सम्मिश्रित है या भविष्य में है? एक समस्या केवल समय में रहती है, समय में निहित होती है.
एक समस्या तबतक ही रहती है, जबतक हम समय की भाषा में सोचते हैं. न केवल भौतिक या वैज्ञानिक समय में, बल्कि मनोवैज्ञानिक, मानसिक समय में भी जबतक हम मनोवैज्ञानिकता में समय की प्रकृति नहीं समझते, हम हमेशा समस्याओं से घिरे रहेंगे. हम सब एक साथ बैठकर इन समस्याओं के पैदा होने, इनके अस्तित्व के बारे में खोजबीन कर रहे हैं. होता यह है कि ह दुनियादारी में सफल होना चाहते हैं, साथ ही आध्यात्मिक मामलों में भी सफल होना चाहते हैं. ये दोनों बातें समान हैं.
यह सफल होने की आकांक्षा समय में होने वाली गतिविधि है. तो हम कह रहे हैं, वह क्या जड़ या मूल है, जो निरंतर समस्याएं पैदा करता है. क्या यह विचार है? या यहां एक केंद्र है, जो अपनी परिधि में ही गति करता है? क्या समस्याएं तब तक ही नहीं रहतीं, जब मैं स्वयं के बारे में ही चिंतित होता हूं? जब तक मैं भला होने की कोशिश करता हूं. यह और वह जाने क्या-क्या चाहता हूं? मैं ही समस्याएं पैदा करूंगा. इसका मतलब है, क्या मैं अपनी एक भी छवि बनायें बिना जिंदगी जी सकता हूं? जबतक मैं अपने सफल होने की छवि, या मुझे बुद्धत्व प्राप्त करना ही है, इसकी छवि, या मुझे ईश्वर का साक्षात्कार करना है, इसकी छवि, मुझे भला बनना है और मुझे एक प्रेमी का व्यक्तित्व धारण करना है, मुझे महत्वाकांक्षी नहीं बनना है, मुझे किसी को दुख नहीं पहुंचाना है, मुझे शांतिपूर्वक जीना है, मुझे एक मौन मन होना है, मुझे अनिवार्य रूप से जाना है कि ध्यान क्या है, आदि-आदि अपनी ही छवियां बनाते हैं.
जे कृष्णमूर्ति
0 Comments