विश्वास की शक्ति
मनुष्य जब चारों ओर से घिर जाता है, कोई उसका मददगार नहीं बनता, तब ईश्वर ही उसकी सहायता करते हैं. चीरहरण के समय द्रौपदी कुरु सभा में अपनी सहायता के लिए जब तक अपने पांच पतियों सहित उपस्थित महान योद्धाओं को पुकारती रही, तब तक उसे कोई सहायता नहीं मिली. किंतु जैसे ही उसने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया उन्हे हृदय से पुकारा, तो दुःशासन चीर खींचते - खींचते थककर जमीन पर गिर गया , लेकिन द्रौपदी की लाज पर कोई आंच नहीं आयी.यहा विश्वास का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. ऐसे ही विश्वास से नरसी भगत ने वह चमत्कार कर दिखाया कि देखने वाले हैरान रह गये.
नरसी भगत की बेटी ने एक बार एक रस्म अदायगी के लिए अपने पिता को अपने ससुराल बुलाया. ऐसे संकट के क्षणों में नरसी भगत अपने भगवान के प्रति पूर्ण रूप से विश्वस्त थे. साधुओं की टोली के साथ वे पुत्री के घर पहुंचे. तो उन्हें देखकर लोग हंसने लगे. बेटी की सास बहू को ताने देने लगी. यह साधुओं की टोली क्या रस्म अदायगी करेगी? हमारी तो बेइज्जती हो जायेगी. क्या जरूरत थी इन सबको बुलाने की ? नरसी भगत की बेटी भी सोच रही थी कि मेरे पिता तो साधु हैं, भला वह कैसे रस्म के अनुसार उपहार देंगे. लेकिन नरसी भगत के चेहरे पर विश्वास और भक्ति की मुस्कान थी.उनकी पुत्री ने अपने पिता का स्वागत किया. अब पिता द्वारा उपहार भेट करने की बारी आयी, सब लोग उत्सुकता से देखने लगे कि एक क्या भेट करेगा. नरसी भगत भक्ति में लीन होकर श्री कृष्ण की छवि में मन लगाये रहे और चमत्कार हो गया.आकाश से हीरे - मोती की बरसात होने लगी. सब एक स्वर में नरसी महेता की जय-जयकार करने लगे. उनकी पुत्री की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा.नरसी भगत की ये कथा बताती है कि विश्वास में कितनी शक्ति है. दुनिया तो भक्त के विश्वास को हिलाने में कसर नहीं छोड़ती, लेकिन जो भक्त अपने गुरु और इष्टदेव के प्रति पूर्ण निष्ठा रखता है, उसके भरोसे को कोई तोड़ नहीं सकता. इसलिए जीवन में चाहे कैसे भी पल आएं अपने विश्वास की शक्ति को कभी कमजोर नहीं होने देना चाहिए.
- डॉ अर्चिका दीदी
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